चम्बल घाटी के भिंड में नहीं है विकास, यह है एमपी का सबसे पिछड़ा शहर...
अक्सर कुछ लोगों को #शिकायत रहती हैं कि #मालनपुर ओद्योगिक क्षेत्र का लाभ भिंड जिले को नहीं मिलता है। इसी मुद्दे का लाभ उठाकर क्षेत्रीय नेता भी भेदभाव दिखाकर लोगो को बरगलाते है। सच तो ये है कि असल में भिंड शहर का स्थानीय नेता मालनपुर के विकास से जलता है। क्योंकि भिंड विधानसभा से निकला नेता भिंड क्षेत्र में कोई खास विकास के काम करवा नही पाया। जैसे कि फैक्ट्री, मेडिकल कालेज, यूनिवर्सिटी, सेंट्रल या राज्य का कोई हेड ऑफिस, दूरदर्शन रिले केंद्र, 6 लेन हाई वे, ऑडिटोरियम, जू, संग्रहालय, रोपवे, फ्लाई ओवर ब्रिज, रिंगरोड, हाट बाजार, मॉल, इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलीटेक्निक कॉलेज, अच्छी सड़के, मनोरंजन पार्क आदि भिंड में नही है।
हमे इस बात को समझना चाहिए कि भिंड शहर में नही तो भिंड जिले में कहीं तो कुछ अच्छा हो रहा है। अगर हम ऐसे ही अटेर-आलमपुर, मिहोना-मेहगांव, अकोड़ा-अमायन, गोहद-गोरमी के आपसी खींचतान में उलझे रहे तो बाजी कोई दूसरा मार ले जाएगा।
एक ख़ास बात और बता दूं कि भिंड जिले में प्रस्तावित हुआ इंडस्ट्रियल एरिया को मालनपुर ने किसी से छीना नही था बल्कि उसे उसकी लोकेशन का फायदा मिला था क्योंकि- ग्वालियर से नजदीकी की बजह से रोड और रेल मार्ग की सुगमता, बिजली हेतु 132kv लाइन की पहुंच, पानी हेतु नहर, कर्मचारी और अधिकारी आवास हेतु ग्वालियर में व्यवस्था, सरकारी जमीन की उपलब्धता, सुरक्षा की दृष्टि से उस समय भिंड दस्यु प्रभावित जिला था तो फैक्ट्री मालिक भिंड में इंडस्ट्री लगाने को तैयार नहीं हुए थे इसलिए इन सब कारणों से मालनपुर को चुना गया था।
भिंड जिले की सीमा के अंतिम पर छोर बसे सभी गांव अगर भिंड जिले के लिए खास नहीं माने तो भिंड का अस्तित्व ही क्या रहेगा? दबोह, मछंड, अटेर, असवार, कोट, चितोरा, एंडोरी, मालनपुर, छान, अंतियनपुरा, गुर्यायची, हरीक्षा, रूरई, मालनपुर आदि जगह भिंड जिले के अहम हिस्से है। जैसे यूपी वालो के लिए अंतिम छोर पर बसे नोएडा (दिल्ली बॉर्डर), झांसी (एमपी बॉर्डर), आगरा (राजस्थान बॉर्डर) आदि सभी शहर बेहद खास हैं वैसे ही भिण्ड जिले की सीमा में बसा हर गांव भिंड के लिए खास है। जैसे बेटा चाहे छोटा हो, बड़ा हो या मझला हो सभी अपनी मां के लिए प्रिय होते है।
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